पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(१३)
(२) व्यंजन

३२ -- क से म तक व्यंजनों के पाँच वर्ग हैं और प्रत्येक वर्ग में पाँच पाँच व्यंजन हैं। प्रत्येक वर्ग का नाम पहले वर्ण के अनुसार रखा गया है।

क-वर्ग -- क, ख, ग, घ, ङ। च-वर्ग -- च, छ, ज, झ, ञ।

ट-वर्ग -- ट, ठ, ड, ढ, ण। त-वर्ग -- त, थ, द, ध, न। प-वर्ग -- प, फ, ब, भ, म।

३३ -- उच्चारण के अनुसार व्यंजनों के दो भेद और हैं -- (१) अल्पप्राण और (२) महाप्राण।

जिन व्यंजनों में हकार की ध्वनि विशेष रूप से सुनाई देती है, उनको महाप्राण और शेष व्यंजनों को अल्पप्राण कहते हैं। स्पर्श व्यंजनों में प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा अक्षर तथा ऊष्म महाप्राण हैं; जैसे, ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ, और श, ष, स, ह। शेष व्यंजन अल्प- प्राण हैं। सब स्वर अल्पप्राण हैं।

३४ -- हिंदी में और के दो दो उच्चारण होते हैं --

(१) मूर्द्धन्य, (२) द्विस्पृष्ट।

(१) मूर्द्धन्य उच्चारण नीचे लिखे स्थानों में होता है --

(क) शब्द के आदि में; जैसे, डाक, डमरू, डम, ढिग, ढँग।

(ख) द्वित्व में; जैसे, अड्डा, लड्डू, खड्ढा।

(ग) ह्रस्व स्वर के पश्चात् अनुनासिक व्यंजन के संयोग में; जैसे, डंड, पिंडी, चंडू, मंडप।

फा. २