पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/२०२

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( १६७ ) ना-इस प्रत्यय के योग से स्त्रीलिंग कृदंत संज्ञाएँ बनती हैं। (अ)-(भाववाचक)--जैसे करना--करनी, बोना--बोनी ।। (आ)--(करणवाचक) जैसे, धौंकनी, ओढ़नी, कतरनी । वैया-यह प्रत्यय ऐया का पर्यायी और “वाला" का समानार्थी है। इसका प्रयोग एकाक्षरी धातुओं के साथ अधिक होता है; जैसे, सवैया, गवैया, छवैया, दिवैया, रखवैया। ( २ ) हिंदी तद्धित प्रा--यह प्रत्यय कई एक संज्ञाओं में लगाकर विशेषण बनाते हैं; जैसे, भूख-भूखा, प्यास-प्यासा, मैल-मैला । प्राइद--(भाववाचक ) जैसे, कपड़ा-कपड़ाइँद (जले की बास ), सड़ाइँद, धिनाइँद । आई--इस प्रत्यय के योग से विशेषणों और संज्ञाओं से भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं; जैसे, भला-भलाई, बुरा--बुराई ।। पाऊ-(गुणवाचक)--जैसे,आगे--अगाऊ,पंडित---पंडिताऊ । आना--( स्थानवाचक)--जैसे, राजपूत राजपूताना, हिंदू-हिंदुआना, तिलंगा-तिलंगाना, उड़िया-उड़ियाना । आयत-( भाववाचक )-जैसे, बहुत-बहुतायत, पंच-पंचायत, तीसरा-तिसरायत, तिहायत । पाहट-(भाववाचक )-जैसे, कडुवा-कडवाहट, पीला-पिलाहट। इयाइस प्रत्यय के द्वारा कुछ संज्ञाओं से ऊनवाचक संज्ञाएं बनतो हैं; जैसे, खाट-खटिया, फोड़ा-फुड़िया।