उनकी गिनती एक ही जाति में होती है और इस जाति का नाम 'पहाड़'
है। 'हिमालय' कहने से (इस नाम के) केवल एक ही पहाड़ का बोध
होता है; पर 'पहाड़' कहने से हिमालय, नीलगिरि, विंध्याचल, आब
और इस जाति के दूसरे सब पदार्थ सूचित होते हैं। इसलिए 'पहाड़'
जातिवाचक संज्ञा है। इसी प्रकार गंगा, यमुना, सिंध, ब्रह्मपुत्र और इस
जाति के दूसरे सब व्यक्तियों के लिए 'नदी' नाम का प्रयोग किया जाता
है; इसलिए 'नदी' शब्द जातिवाचक संज्ञा है। लोगों के समूह का नाम
'सभा' है। ऐसे समूह कई हैं; जैसे, 'नागरी-प्रचारिणी', 'कान्यकुज',
महाजन', 'हितकारिणी'। इन सब समूहों को सूचित करने के लिए
'सभा' शब्द का प्रयोग होता है, इसलिए 'सभा' जातिवाचक संज्ञा है।
८० -- जिस संज्ञा से पदार्थ में पाये जानेवाले किसी धर्म वा व्यापार का बोध होता है, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं; जैसे, लम्बाई, चतुराई, बुढ़ापा, नम्रता, मिठास, समझ, चाल।
प्रत्येक पदार्थ में कोई न कोई धर्म होता है। पानी में शीतलता, आग में उष्णता, सोने में भारीपन, मनुष्य में विवेक और पशु में अविवेक रहता है। पदार्थ मानों कुछ विशेष धर्मों के मेल से बनी हुई एक मूत्ति है। कोई कोई धर्म एक से अधिक पदार्थों में पाये जाते हैं; जैसे, लंबाई, चौड़ाई, मुटाई, वजन, आकार। चाल, लेन-देन, आदि व्यापारों के नाम हैं।
८१ -- भाववाचक संज्ञाएँ बहुधा तीन प्रकार के शब्दों से बनाई जाती हैं। (क) जातिवाचक संज्ञा से -- जैसे, बुढ़ापा, लड़कपन, मित्रता, दासत्व, पंडिताई, राज्य।