पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१०७

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१०४ मनुस्मृति मापानुवाद दर्शन ठीक र होने तक वैट कर कर ॥१०१|| प्रातः सध्या के जप से रात्रि भर की और मायं मन्या से दिन भरकी दुर्वासना का नाश होता है ॥१०॥ नतिष्ठति तु यः पूर्ण नापास्ने यश्च पश्चिमाम् । स शबबहिष्कार्यः सर्वम्माद् द्वजकर्मणः ॥१०३। असमीप नियता नत्य विधिमास्थितः । सावित्रीमध्यधीयीन गवारण्यं ममाहितः ॥१४॥ जोपाल काल की संध्या न करें और जो सायङ्काल की भी न करे वह सम्पूर्ण विना के कम में शवन् वहिष्कार्य है ।।१०३॥ जलकं समीप एकाचित्त से धन (बायान्त) में जाकर (सन्ध्या वन्दनादि) नित्य कर्म और गायत्री का जाप भी करे ॥१०४|| वेदेोपकरणे चैत्र स्वाध्याये चैत्र नत्यक । नानुराधास्त्रानन्याये हममन्त्रेप चैव हि ॥१०॥ नैत्यके नास्त्यनध्यायो अन्नमत्र हि वन्स्मृतम् । प्रमाहुतिहुतं पुण्यमनध्यायवपद् छतम् ॥१०६॥ शिक्षादि के पढने और निन्य के स्वाध्याय और होममन्त्रों में अनध्याय के दिन भी मनाई नहीं है ।।१०५॥ नित्य के कर्म में अनध्याय नहीं है। क्यों कि उस का ब्रह्मयज कहा है। उस मे ब्रह्माहुति का ही होम है और (उस) अनध्याय में भी वपटकार (समाप्तिसूचक ) शब्द किया जाता है ।।१०६॥ य स्वाध्यायमधीतेऽन्दं विधिना नियतः शुचिः। तस्य नित्यं परत्येष पयो दधि घृतं मधु ॥१७॥