पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/११५

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मनुस्मृति भावानुवाद बन की बेटता सक और अपने बानियोंने थोड़े ही दिनों में मध्य (परावरी ) होता है | त्रानणं दशवर्ष तु शतवर्ष तु भूमिपम् । पिनापुत्री विजनीकान् ब्राह्मणस्तुनयाः पिता ॥१३५॥ वित्र बन्धुत्रश्च अमं विद्या भवति पञ्चमी । एतानि मायस्थानानि गरिया यद्यदुत्तरम् ॥१३६|| हम वर्ष का बास और सौ वर्ष का चत्रिय हो तो पिता पुत्र मनान नान और मामगा उनम पिता के समान है ||१३|| रविन मायागजित हर २ पिश्यादि - बन्धु ३ श्रीनामातादिक कम ४ आयु और ५ विद्या पाच बड़ाई में म्यान है। इनमें उमरतर एक से एक अधिक है। पञ्चानां त्रिषु धराउ भगामि गुणवन्ति च । यत्रस्युः सात्रमानाह गद्रोप दशमी गत. ॥१३७॥ चक्रिया दशमीस्थन्य गगिणोमारिण स्त्रिया। स्नातकस्य च राजरच पन्या दंया वर य च ॥१३॥ नीन वणों ( ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य) में पूर्वाक्त पांच गुणों में से जिम में जिनन विक हो वह उतना अधिक माननीय है और शूह भी नौ वर्गका हुआ नाननीय है ॥१३७॥ चनयुक्त खादि पर सवार हुने और ५४५०० वर्ष के युद्ध रोगी, वोम वाले, न्त्री लातक गना और वर-जिसमा विवाह हो इन सब का मार्ग (रास्ता) छोड़ देव ॥१८॥ तपातु समवेताना मान्या स्नातरूपार्थिवी।