पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/११८

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द्वितीयोऽध्याय द्वारा जो जाति उत्पन्न करता है वह जाति सत्य है और अजर अमर है क्योकि उमी से शाश्वत प्रम की प्राप्ति होती है।॥१४८।। अल्पं वा बहु वा यस्य श्रुतस्योपकरोति यः । तमपीह गुरु विद्याच्छुतोपक्रियया तया ॥१४६|| ब्राह्मस्य जन्मनः कः स्वधर्मस्य च शामिता । बालोपि वित्रो वृद्वस्य पिता भवति धर्मतः ॥१५०।। जो (उपाध्याय) जिसका अल्प वा बहुत वेदाध्ययनादि कराकर उपकार करे उसका भी इस लोक में पढाई के उपकार करने मे 'गुरु' नाने ॥१४९|| ब्रम (वेद) के पदान से जन्म दिया है जिसने और स्वधर्म की शिक्षा करने वाला. ऐसा (आयु से) पालक भी विद्वान् पुरुष (आयुमानसे) युद्ध (मूर्ख) का धर्मसे पिता है।।१५०। 'अध्यापयामास पित्तन् शिशरागिरसः कविः । पुत्रका इति होवाचं ज्ञानेन परिगृक्षसान् ॥१५१।। ते तमर्थमपृच्छन्त देवानागतमन्यवः । देवाश्चतासमेत्याचुान्यं वः शिशुरुक्तवान् ॥१५२॥" 'अगिरस मुनि के विद्वान पुत्र ने अपने पितृव्यादि का पढ़ाया और अपने अधिक विद्या ज्ञान से उनको शिण्य जान कर हे पुत्रकाः! अर्थात् 'हे लड़का ऐसा कहा है ।।१५।। वे क्रोधयुक्त होकर देवताओं से 'पुत्र' के शब्दार्थ को पूछने गये । देवताओं ने मिलकर उनसे कहा कि उस लड़के ने तुमसे ठीक कहा है।" (मनु के पश्चात् अङ्गिरस गोत्र कवि हुआ और उसका भी लिट् लकार परोसभूत से बहुत पुराना करके इन श्लोको मे कहा होने से ये दोनों श्लोक नवीन ज्ञात हैं) ॥१५२।। अन्ना भवति वाला पिता भवति मन्त्रदः । .