पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१२४

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द्वितीयाऽध्याय मपुदि गम, स्त्री (मिरका उणादि) जानड़ी बन्नु है सब और भारिप हिमा ||१४ा नेजति का मदन ब्रांच में उसन बना हरना. छत्र धारण. नाम, कलाम, नाचना गाना और दगा 111 छुनु च जनवाई व पन्विाई नयान्नम् । स्त्रीणं च प्रचलातम्ममुपवान परम्य च ॥१७६।। एक: शबीन मबत्र न रेनुः स्कन्दयेस्क्वचित । कामादि स्कन्दयन्ता हिनस्ति बनमान्मनः ॥१०!] आ, मगड़ा, दूसरे की निन्दा, नग, त्रियों के भाव देवना गनिमा करना और दूसरे का उपयात (न करें) ||| सच्चा माली शयन करें और शुक्र (ग) कान गिराने क्योंकि इच्छा से कुक ना पानकर दो नंत का नाश करताई ।।दा स्वप्नं सिवा ब्रमचार्ग द्विज शुभमकामतः । स्वालामयित्वा निः पुनामिन्यूचं जपेत् ॥११॥ उदकुम्म मुमनसा गोशमनिकाकुशान् । आहन्यावदयानि मई चाहदरवन्न् ॥१२॥ स्वप्न में दिल ब्रह्मचारी कान्निा इच्छा के दिन जाना म्नान कर परमाल न पूजन बक, नीन भरपुलाचिन्द्रियम्' इन ऋचा पढ़े ॥३८शा पानी का घड़ा. पुन, गोवर महा. कुश इमंश जिनन आवश्यक हा ले छा और प्रतिदिन मिशले आईना योग्हीनानां प्रशस्तानां स्वकर्मम् ।