पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१३२

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द्वितीयाऽध्याय १२९ उबटन लगाना, स्नान कराना. देह इवाना, फूलों से बाल गूधना (य सेवा) गुरुगनी की न करें ।।२११पूर्ण २० वर्षका (शिव) गुरुदोष का आनने वाला युवति गुरुपत्नी को पैर छुकर नमकार न करे (अांत दूर से भूमि पर प्रणाम करले) ॥२१॥ स्वभाव एप नारीणां नराणामिह दूषणम् । अतार्थान प्रमायन्ति प्रमदासु विपश्चितः ॥२१॥ अविद्वांसमलं लोके विद्वांसमपि वा पुनः । प्रमदा छु त्पयं नेतु कामक्रोधवशानुगम् ।।२१४॥ यह स्त्रियों का स्वभाव है कि पुरुषों को दोष लगा देना इससे पण्डित लोग स्त्रियों में प्रमत्त नहीं होत (बढ़े सावधान रहते हैं) IRशा काम क्रोध के वश हुआ पुरुष विद्वान वा मूख वहो उसको बुरे मार्ग पर ले जाने को स्त्री समर्थ है ।।२१४।। मात्रा स्वस्रा दुहित्रा बान विविक्तासनोमवेत् । बलवानिन्द्रियग्रामा विद्वांसमपि कति ॥२१शा कामं तु गुरुपलीनां युक्तीनां युवा भुवि । विधिवद्वन्दनं कुर्यादसावहमिति ध्रुव ।।२१६॥ मां या बहिन या लड़की के साथ भी एकान्त स्थान में न बैठे क्योंकि अति बलवान् इन्द्रियों का गण, विद्वान् पुरुष को भी खींच सकता है।।२१५॥ युवति गुरुपत्नी और आप भी युवा हों वो चाहे यथोक्त विवि से अमुक शाहम् यह कहकर (पर बिना छुवै) पृथ्वी पर नमस्कार करले ॥२१॥ विप्रोग्य पादग्रहणमन्वहं चाभिवादनम् ।