पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१३९

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मनुस्मृति भाषानुवाद एतेष्वविद्यमानेषु स्नानासनविहारवान् । प्रयुञ्ज नाग्निशुश्रुषां साधयेद्द हमात्मनः ॥२४॥ गुरु के मरे पीछे गुरुका पुत्र गुणों से युक्त हो और गुरु की स्त्री हो और गुरु के सपिण्ड अर्थात भ्राता आदि हो तो उन का भी गुरु के तुल्य मानता रहे ||२४७) और ये (गुरुपुत्र, गुरु की स्त्री और गुरु के पितृव्यादि) न हार्वे तो स्नानादि और होमादि करनाहुवा अपने शरीरको साधे (ब्रह्मकी प्राप्तिके योग्य करे)२४८ एवं चरति यो वियो ब्रह्मचर्यमविप्लुतः । स गच्छत्युत्तमस्थानं न चेहाजायते पुनः ॥२४॥ जो ब्राह्मण ऐसे अखण्डित ब्रह्मचर्य करता है वह ब्रह्म को प्राप्त होता है और फिर पृथिवी पर जन्म नहीं लेता ॥२४९।। इति मानवे धर्मशास्त्र ( मुगुणोक्तायां संहितायां) द्वितीया ध्यायः ॥शा इति श्री तुलसी राम स्यामि विरचिते मनुस्मृति भाषानुवादे द्वितीयोऽध्यायः॥