पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१४१

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१३८ मनुस्मृति भापानुवाद N सा प्रशस्ताद्विजानीनां दारकर्मणि मैथुने ॥५॥ महान्त्यपि समुद्धानि गाजाविधनधान्यतः । स्त्रीसम्बन्चे दशैतानि कुनाति परिवर्जयेत् ॥६॥ जा मावा की सपिण्ड (मात पीढ़ी में ) न हो और पिता के गोत्र मे न हो ( ऐसी स्त्री) ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य को स्त्री कर्म मैथुन में श्रेष्ठ है ||५|| यदि गो, वकरी. भेड़, इन्य और अन्न से बहुत मसूत भी हो तो भी इन आगे कहे विषयुक्त) दश कुलों की कन्या से विवाह न करे | हीनक्रिय निष्पुरुष निश्छन्दो रोमशार्शसम् । क्षय्यामयाव्यपस्मारिश्चित्रिकुष्ठिकलानि च ||७|| नाइकपिला कम्पई नाषिकाही न रोगियीम् । नाजामिका नातिनामा न बाचाट नपिनमाम् ||८|| (वे फुल ये हैं) १ हीनक्रिय (जातकर्मादि रहित) २ पुरुष रहित ३वेदपाठरहित, ४ बहुत बड़े वालों बाला, ५ बवासीरयुक्त, ६च्य व्याधि से युक्त ७ मन्गग्नि ८ मृगी ९श्वेत कुष्ठी और १० गलितकुष्टी (इन दश कुला को छोड़ देवे ) || कपिल रह वाली, अविक अङ्ग वाली, रोगिणी, बिना बालों वाली, बहुत वालो वाली कठोर वालने वाली और कारी कन्या से विवाह न करे ॥८॥ नवृिक्षनदीनाम्नी नान्त्यपर्वतनामिकाम् । न पच्यहिन ध्यानाम्नी नच भीपण नामिकाम् || अव्यकाङ्गी सौम्यनाम्नी हंसवारणगामिनीम् । तनुलामकेशदशनां मृदङ्गीमुदहेत्स्त्रियम् ॥१०॥