पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१४२

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तृतीयाऽध्याय नक्षत्र, वृक्ष, नदी, अन्त्यज पहाड़, पक्षी. मर्प शूद्र (आदि) नामों और भरनामों वालीसे भी न करे ।। सुन्दर अगवाली, अच्छे नाम वाली, हंस और गज के मन्श गमन वाली पतले रोमांचों, बालों और दांतों और कोमल शरीर वाली से विवाह करे ॥१॥ यस्यास्तु न भवेद् भ्राता न विज्ञायेत वा पिना। नोपयच्छेन तो प्राज्ञः पुत्रिकाधर्मशङ्कया ॥११॥ "सवर्णाप द्विजातीनां प्रशस्ता धारकर्मणि । कामतरतु प्रवृत्तानामिमा. म्यु. क्रमशोषग ||१२|| जिसके भाई न हो वा जिस के पिनाका पता न लगे ज्ञानवान् पुरुप (जिस का प्रथम पुत्र अपने नाना की गोद धर्म से देना पडे उस को 'पुत्रिका' कहत हैं ) पुत्रिका' धर्म से डर कर उस से विवाह न करे ॥१२॥ "बामण, क्षत्रिय, वेश्यों को स्त्री करने में प्रथम अपने वर्ष की कन्या से विवाह श्रेष्ठ है और कामाधीन विवाह करे तो कम से ये नोची भी श्रेष्ठ है ॥१२॥" शूटैव भार्या शूदस्य सा च स्वा च विश. स्मृते । ते च स्वा चव राजश्च ताश्च स्वाचा प्रजन्मन ॥१शा' 'शूद को शूद्र ही की कन्या से , वैश्य का वैश्य की कन्या से. क्षत्रिय को शू वैश्य और क्षत्रिय की कन्या से और ब्राह्मण का शुद्र वैरर क्षत्रिय और प्रामण को (कन्या से विवाह कर लेना बुरा नहीं है)।" (१२, १३ श्लोक स्वयं मनु.के ही अगले १४ ॥ १५ ॥ १७ ॥ १८ और १९ वे श्लाको से विरुद्ध हैं) ॥१॥ न ब्राह्मणक्षत्रिययोरापद्यपि हि तिष्ठतः। कस्मिंश्चिदपि वृत्तान्ते शुद्रा मार्योपदिश्यते ॥१४॥ .