पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१४३

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मनुस्मृति भाषानुवाद ब्राह्मण क्षत्रियको आपत्कालमे रहतोंका भी किसी दृष्टान्तमे शुभ भार्या नहीं बताई गई है ॥१४॥ हीनजाति स्त्रयं मोहाद्वहन्तो द्विजातयः । कुलान्येव नयन्त्याशु ससन्तानानि शुद्धताम् ॥१५ शुवेदी पतत्यत्रेस्तथ्यतनयस्य च । शौनकस्य सुनोत्पत्या तत्पन्यतया भृगो' ||१६|| ब्रह्मण क्षत्रिय वैश्य मोहवश अपने धर्ण स हीन वर्णस्थ स्त्री से विवाह करें तो सन्तान ममन अपने कुल को शू ता को प्राप्त करते हैं ॥१९॥ "शु मे विवाह करने से पतित होता है यह अत्रि और उतथ्य के पुत्र का मन है। शासे सन्तान उत्पन्न होने सं पतित हाता है यह शौनक का मत है। और उस सन्तान के सन्तान होने से पतित हो यह भृगु का वचन है। (सष्ट है कि यह श्लोक मनु का नहीं है ॥१॥ शद्रां शयनमारोप्य ब्राह्मणो यात्यधोगतिम् । जनयित्वा सुतं नस्यांग्रामएचादेव हीयते ॥१७॥ देवपित्र्याति यानि तत्प्रधानानि यस्य तु । नाश्नन्ति पितृदेवास्तन्न च स्वर्ग स गच्छति ॥१८॥ शूना के शय्या पर आरोपण करने से ब्राह्मण नीच गति को प्राप्त होता है और उस के सन्तान उत्पन्न करके तो ब्राह्मणत्व से हो हीन हो जाता है ।।१७।। और जिम ब्रामण ने शशा स्त्री के प्रधानत्व से होम , श्राद्ध और अतिथि भोजन कराया चाहा है. उस का अन्न पितृसंबक'और देवतासंत्रक पुरुष प्रहण नहीं करते और वह पुरुप स्वर्ग को प्राप्त नहीं होता ॥१८॥