पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१४५

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मनुस्मृति मावानुवाद विवाह धर्मसम्बन्धी हैं, परन्तु किमी को भी राक्षस विवाह योग्य नहीं ॥२शा ब्राह्मण को (ब्राह्म देव आप प्राजापत्य) पहले चार विवाह उत्तम है। चत्रिय का राक्षस विवाह श्रेष्ठ है और वैश्य शुद्र को एक श्रासुर विवाह उत्तम है ||२४|| "पञ्चानां तु यो धा द्वावधयो स्मृताविह । पैशाचश्चासुरश्चैव न कयौ कदाचन २५|| पृथक्पृथग्या मित्री वा विवाही पूर्वचोटितौ । गान्धर्वो राक्षसश्चैव धयों पत्रस्य तौ स्तृतौ ||२६|| भपाय विवाहाम तीन धर्म सम्बन्धी और दो अधर्म सम्बन्धी हैं । पैशाच और श्रामुर कमी करने योग्य नहीं हैं |२५|| पहले कहे हुवे न्यारं २ अथवा मिल हुवे गांव और राक्षस विवाह अत्रियों के धन सम्बन्धी कहे है।। ' (२२ ॥ २३ ॥ २४ ॥२५॥२६ श्लोक प्रक्षित जान पड़ते हैं। क्योंकि प्रथम तो २१ ३ में जो ८ विवाह कहे हैं उनके लक्षण क्रम से २७ वे से वर्णन किये गये हैं। इसलिये उनसे ठीक सम्बन्ध मिल जाता है। दूसरे ये श्लोक स्वयं विरुद्ध हैं। क्योंकि आगे ३९॥ ४० ॥ ४१ वे श्लोकों मे प्रथम के ब्राह्मादि विवाह उत्तम और पिछले ४ निन्दित बताये जायगे और यही उनके लक्षणों से पाया जाता है । परन्तु उनके विरुद्ध यहां २३ मे ब्रामण का छ विवाह वमयुक्त चवाय है । २५ वें में पैशाच और आसुर को जित किया है । २३ और २४ ३ में उन्हें विहित बताया है । इत्यादि बहुत विराध हैं जो सष्ट हैं ॥२६॥ आच्छाघ चार्चयित्वा च श्रुतिशीलवते स्वयम् । आय दानं कन्याया प्रामोधर्मः प्रकीर्तितः ॥२७॥ यज्ञे तु वितते सम्यगृत्विजे कर्म कुर्वते ।