पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१५०

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तृतीयाऽध्याय ऋतुःस्वाभाविकः स्त्रीणां रात्रयः पोडश स्मृताः । चतुर्भिरितरैः सार्धमहाभिः सद्विगर्हितः ॥४६॥ अपनी स्त्री से (अमावस्यादि) पर्व धर्जित दिनों में ऋतुकालमे प्रीतिपूर्वक मभाग करें ।।४५॥ स्त्रियों की स्वाभाविक ऋतुकाल की १६ गत्री है जिन में (पहले) चार दिन अन्चे मनुष्यों से निन्दित भी मम्मिलित हैंmmel तासामायाश्चतसस्तु निन्दितकादशी च या। त्रयोदशी च शेपास्तु प्रशस्ता दश रात्रयः ॥४७॥ युग्मासु पुत्राजायन्ते स्त्रियाऽयुग्मासु रात्रिषु । तस्मायुग्मा सुपुत्रार्थी संविशेदातवेस्त्रियम् ॥४८|| उन में चार प्रथम की और ११ वी और १३ वी येछ रात्रि (स्त्री भागम) निषिद्ध है और शेप दश रात्रि श्रेष्ठ हैं ॥४७॥ (उन दशो में भी) युग्म (ऋठी पाठवी इत्यादि) में पुत्र उत्पन्न होते है, और अयुग्म (सातवी आदि) गत्रियों में कन्या उत्पन्न होती हैं इम कारण पुत्र की उन्छा याला युग्म तिथियों में ऋतुकाल मेस्त्री मे संमोग करें ॥४॥ पुमान् मोऽधिक शुक्र स्त्री भवत्यधिक स्त्रिया । समे पुमान्पुस्त्रियौ या क्षीणेऽन्पे च विपर्ययः॥४६॥ निन्द्रास्त्रष्टासु चान्यासु स्त्रियोरात्रिपुवर्जयन् । ब्रह्मचार्येव भवति यत्र तत्राश्रमे वसन् ॥५०॥ पुरुप का वीर्य अधिक हो तो पुत्र और स्त्री का अधिक हो तो कन्या जो दोनो का वीर्य बराबर हो नो नहुंसक या १ कन्या ६