पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१५१

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मनुस्मृति भापानुवाद, और १ पुत्र उत्पत्र होता है। ची क्षीण हो अथवा, कम हो तो मन्तान नहीं होती ॥४॥ चार गत्रि ऋतु की. ११ वी १३ वी और २ पर्व को इन रात्रि को भाग कर, शेप रात्रियों में जिस किमी भी आश्रम में रहता हुवा (स्त्री संभाग कर तो) ब्रह्मचारी ही है ॥५०॥ न कन्याया: रिना विद्वानगृहीयाच्छुल्कमण्वपि । गृहन्छुल्क हि लोमेन स्याबरा पत्यविक्रयी ॥५१॥ स्त्रीधनानि तु वे माहादुपजीवन्ति बान्धवाः । नारी यानानि वस्त्र वा ते पापा यान्त्यधोगतिम् ॥५२॥ मानवान पिता कन्या का अस द्रव्य भी शुल्क-मूल्य ग्रहण न करे। यदि लाभ में मूल्य प्रहण करे तो वह मनुष्य सन्तान का बग्नं नाला हा | || स्त्री वन (स्त्री का दिया हुवा घर) वा थान वा वात्र का (पति के) बान्य ग्रहण करते हैं वे पापी अधोगति को प्राप्त होते हैं ॥१२॥ आपे गामिधुन शुल्क केचिदाहुम पैव तद् । अल्पोऽप्येचं महान् वापि विक्रयस्तात्रदेव सः ॥५३॥ यासां नाददते शुल्कं ज्ञातयो न स विक्रयः । अर्हणं तत्कुमारीणामानृशंस्यं च केवलम् ॥५४॥ आप विवाह में गौ के जोड़े का ग्रहण करना जो कोई कहते सा मिथ्या है क्योंकिबहुत मूल्य हो चाहे थोड़ा परन्तु बेचनाने ही ॥५३॥ परन्तु जिन कन्याओं का द्रव्य पित्रादि न लें वह बेचना नहीं है किन्तु कन्याओंका पूजन और केवल दया है ।।१४।। पिमितभिश्चैताः पतिभिर्देवरैस्तथा ।