पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१५२

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तृतीगऽध्याय १४९ ८ पूज्या भूपयितव्याश्च बहुकल्याणमीप्मुभिः ॥५५॥ यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ने तत्र देवताः । यत्रैवास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तवाऽकलाः क्रियाः ॥५६॥ अपनी वहन भलाई चाहे तो पिता भाई पति और देवर भी (वन्त्रालङ्काराठि से) इनका पूजन करे ।।१५।। क्योंकि जिम कुलमे त्रियें पूजी जाती हैं, धडा देवता रमने हैं और जहां इनका पूजन नहीं होता वहां सम्पूर्ण कर्म (यज्ञादि) निरर्थक हैं ॥५६॥ शोचन्ति जामवो यत्र विनम्पत्याशु तस्कुलम् । न शोचन्ति तु यत्रता वर्धते तद्धि सर्वदा ॥५७|| जामया यानि मेहानि शपन्त्यप्रतिपूजिताः । तानि कृत्याहतानीव विनश्यन्ति समन्ततः ॥५॥ जिस कुल में स्त्रिये (दुखित हो) शोक करती हैं, वह कुल शीघ्र नाश को प्रान हो जाता है, जहां ये शोक नहीं करती वह (कुल) सर्वदा पढ़ता है ।।१४ा जिन घरोंका अपूजिन होकर स्त्रिया शाप देती हैं वे घर कृत्या (विषप्रयोगादि) के से मारे सय और नाश को प्राप्त हो जाते हैं ।।५८॥ तस्मादेनाः सदा पूज्या भूपणाच्छादनाशनः । भृतिकामैनरनित्यं सत्कारेपूत्सवेषु च ॥५६॥ सन्तुष्टो माया मा भर्ना भायो तथैव च । यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र ध्र वम् ।।६०॥ इसलिये ऐश्वर्य की इच्छा करने वाले पुरुषो को भूषण और वस्त्र आदिसे अच्छे कमों और विवाहादि में इन (स्त्रियों) का सदा