पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१५३

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मनुम्मृति भाषानुवाद मन्कार रखना था है ।।१९।। जिन कुल मे नित्य स्त्री से पति और पति से स्त्री प्रसन्न रहती है उन कुन में निश्चय कल्याण होता है ।।६०॥ यदि हि स्त्री नरोत पुमांस न प्रमोदयेत् । अप्रमोदात्पुनः पुंसः प्रजनं न प्रवर्तते ॥६॥ स्त्रियां तु गेचमानायां सर्व तद्रोचते कुलम् । तस्यां त्वाचमानायां सर्वमेव न रोचते ॥६२|| यदि स्त्री शोमित न हो तो पति को प्रसन्न न कर सके और पुरुप के प्रमन न रहने से सन्तान नहीं चलती ॥६१।। स्त्री (वस्त्र आमूगदि में) गोभिन होना मम्पूर्ण कुल की शोभा है और उनके पालन न से सम्पूर्ण कुल मलिन रहता है ।।६।। कुषिताः क्रिया तो दानध्ययनेन च । कुलान्यकुलना चान्ति ब्राह्मणातिक्रमेण च ॥६॥ शिल्पेन व्यवहारेण शूद्रापत्यैश्च केवलैः । गोभिरश्यैश्च यापैश्च कृप्या राजोपसेवया ॥६॥ खोटे विवादों से, कर्म के लाप से और वेद के न पढ़ने से कुल नीचपन को पार हो जाते हैं और ब्राह्मणो की आज्ञा मा करने से भी ॥६३॥ शिल्प और व्यवहार में केवल शुद्र सन्तानो से गाय, घाडे और सवारियो से खेती और राजा की नीची नौकरी से-||६४ अयाज्ययाजनैश्चैव नास्तिस्येन च कर्मणाम् । कुलान्याशु विनश्यन्ति यानि हीनानि मन्त्रतः॥६५॥