पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१५४

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हत्तीयाऽध्यान १५५१ मन्त्रवस्तु समृद्धानि कुलान्यल्पयनान्यपि । कुलसंख्यां च गच्छन्ति कर्षन्ति च महद्यशः ॥६६॥ और चारालादि को यक्ष कराने तथा भौन मात कमों की अश्रद्धा में और वे कुन जा बंदपार से हीन है, इन कामा मशीन ही नाश का प्राम जाने || मोर वेदों में ममृद्व कुन चाहे अन धन वाले भी हो, पान्नु बडे कुन की गिनती मे गिर्न जाते हैं और ची या धारण करते है (अर्थान कुन की प्रनिष्ठा चंदपाठ में है न कि नोकरी, व्यापार, मवारी और गो आदि आडम्बर में) ॥६॥ मैवाहिकन्नी कुत गृह्य कर्म यथाविधि । पञ्चयज्ञविधानं च पक्तिं चान्वाहिकी पृटी ॥३७॥ पञ्च मूना गृहस्थम्य चुली पेपण्युपस्करः । कएडनी चोदकुम्भश्व वध्यते यास्तु वाहयन् ॥६॥ विवाह की अग्नि में विधिपूर्वक गृरोत कम (मार्य प्रात होमादि) करे और पञ्चपज्ञाननि यलिश्चादि और नित्य करने का पाकभी गृहस्य (पी में) करें ।। ६७॥ ये पांच वतु गृहम्धको हिंमा का मूल है. चूना , चक्की २, बुहारी ३ उम्पल मूमल जल का घडा ५, इनका अपने कामो मे लाता हुआ (पाप में) बंध जाता है ॥६॥ तामां क्रमेण सर्वासां निष्कृत्यर्थ मह पंभिः । पञ्चक्लृप्ता महायज्ञाः प्रत्यहं गृहमेधिनाम् ॥६६॥ अध्यापनं ब्रह्मयनः पितृ यज्ञस्तु तर्पणम् ।