पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१५५

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मनुस्मृति भाषानुवाद होमोवोलिमतिान्यज्ञोऽतिथिपूजनम् ॥७०॥ गृहस्थों के उन पापों के प्रायश्चित्तार्थ महर्षियों ने प्रतिदिन के पांच महायन्त्र रचे है ।।।९॥ ब्रह्मयज्ञ-पढ़ाना और पितृयज्ञ तरण और देवयज्ञ होम और भूतयज्ञ = भूतलि और मनुष्य यज्ञ = अतिथि भाजन (ये ५ हैं)॥७०|| पञ्चैतान्यामहायज्ञान हापयति शक्तितः। स गृहेपि वभिन्यं सूनादेोर्न लिप्यते ॥७१॥ देवतातिथिभृत्यानां पितणामात्मनश्च यः। न निर्वपति पञ्चानामुच्छ सन्न स जीवांत ॥७२॥ जाइन ५ महायजों का अपनी शक्ति भर न छोड़े वह पुरुष गृह में बसता हुआ भी हिंसा के दापो से लिप्त नहीं होता ||७|| देवता प्रातथि भृत्य माता पिता आदि और आत्मा इन पाचों के अन्न न दे तो जीता हुआ भी मरे के तुल्य है।।७२।। अहुतं च कुतं चैव तथा प्रहुतमेव च । वाम हुसं प्राशितं च पञ्चयज्ञान्प्रचक्षते ॥७३॥ जपोऽहताहुताहामा प्रहुता भौतिका बलिः । ग्राम' हुतं द्विजाग्रयाचो प्राणितं पितृतर्पणम् ॥७४॥ १ अहुत, रहुन, ३ प्रहुत, ४ ब्राझहुत, ५प्राशित ये पांच दूसरे नाम पञ्चमहानों के (मुनि लोग) कहते है ।।७३।। बहुत-जप, हुत- होम, प्रहुत-भूतवलि, बाबहुत ब्राह्मण की पूजा, प्राशित नित्य श्राद्ध (कहाता है ) । 'स्वाध्यायनित्य युक्तः स्यादवैचैवेहकर्मणि ।