पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१५८

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तृतीयाऽध्याय १५५ देवताओं के लिये प्राणादि प्रतिदिन होम करे ॥४॥ अग्नेः सोमस्य चैवादीत यो व समस्तयाः। विश्वेभ्यश्च व देवेम्पो धन्वन्तरय एव च |५|| कुद पैषानुमत्यै च प्रजापतय एव च । सह यावापृथिव्योश्च तथा स्विष्टकृतेऽन्ततः ॥८६॥ (वे देवता ये हैं:-) अग्नय, सामाय, इस से पहिले होम करे फिर दोनों का नाम मिलाकर, फिर विश्वभ्योदेवभ्य और धन्वन्तरये । और वह अनुमत्यै, प्रजापवर्च, द्यावाधिवीभ्याम् और अन्त में बिष्टकृत ( इन सब के साथ) 'स्वाहा' अन्त में लगा कर होम करे |८|| एवं सम्बन्धविर्हता सदिक्षु प्रदक्षिणम् । इन्द्रान्तकाप्यतीन्दुभ्यः सानुगेभ्यो बलि हरेत् ।।८७॥ मरुद्दम्य इति तु द्वारि त्रिपेदप्स्सस्य इत्यपि । वनस्पतिभ्य इत्येव' मुसलालूखले हरेत् ॥all उक्त प्रकार अच्छी विधि से होम करके, चारों दिशाओं में प्रदक्षिण क्रम से सानुग, इन्द्र, यम, चरण और साम, इन के लिये बलि दे || मरुद्भयः ऐमा कह कर वार, अद्भवः ऐसा कह करजल, वनस्पतिभ्य, कह कर उलूखल, मूसल निमित्त वलिडे ||८८t उच्छीपके श्रियै कुर्याद्रकाल्यै च पादतः । ब्रह्मवास्ताप्पविश्या तु वास्तुमध्ये वलि हरेत् ||cell विश्वेभ्यश्चैव देवेम्यो बलिमाकाश उत्क्षिपेत् । दिवाचरेभ्यो भृतम्या नक्तंचारिभ्य एव च 11601 ।