पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१६२

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द्वितीयाऽध्याय में श्रद्धा रखते हुये यदि यही तप करने चले जायगे तो आशा है कि भविष्यन् में इन सब का पूरा २ भेद जान पड़ेगा और सब देवता कहाने पाले दिन्य पदाथों में जो २ सा गुण है जिस से वह २ पदार्थ दिवो दानाद्वा०) इत्यादि निरुक्त के अनुसार देवता कहाता है वह २ गुण परमात्मा में अवश्य अनन्तभाव से वर्तमान हैं। इस लिये उस र देवतावाचक शब्द में परमामा का प्रहण करना ते. निर्विवाद ही है) ॥११॥ शुनां च पनितानाच श्वपचा पापरोगियों। धायमानां कृमीणां च शननियंपेद् मुवि ।।२।। कुत्ते पतित, पाण्याल, पापरेगी. कच्चे, तथा कीड़े इन को धीरे से भूमि पर भाग डाल (जिसमें मिट्टी न संग) ॥९२|| एवं यः सर्वभूतानि बामणो नित्यमचति । स गच्छति परं स्थानं तेजो मूर्ति पथजुना ॥६३|| वृत्तलिक वमतिथि पूर्वमाशयेत् । भिक्षा च मिश्वे दयाद्विश्विद् ब्रमचााणे ||४|| इसप्रकार जो ब्राह्मादि नित्य मय प्राणियों का सत्कार करताहै वह सीधे मार्गसे ज्योतिरूप परमधाम का प्राप्त होता है ।।१३उक्त प्रकार में बलि कर्म करके अतिथि को प्रथम भोजन करावे और विधिवत् मिना बाले ब्रामवारी को भिक्षा देवे ॥१४॥ यत्पुण्यफलमाप्नोति गांदचा निधिवद् गुरोः । तत्पुण्यफलमाप्नोति भिक्षां दचा द्विजो गृही ॥६५॥ भिवामप्युदपात्रं वा सत्कृत्य विधिपूर्वकम् ।