पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१८२

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हतीयाऽध्याय 3 सूकरतां ब्रजेत् ॥१९०। 'प्रामन्त्रितन्तु यः पाढे दृपल्या मह मोदते । दातुर्यदृष्कृतं किंचित्तत्सर्व प्रतिपद्यते ।१९११ अकोयना शौचपराः सततं ब्रह्मचारिण । न्यन्तशास्त्रा महाभागा. पितर . पूर्ववेवताः ।।१९। यस्मादुत्पत्तिरेतेषां सर्वेषामप्यशपत ये च रुपत्राः म्युनियमन्ताभित्राधत ॥१९॥ मनोहरण्यगर्भन्य थे मरीच्यादयः सुताः । तेपामृपीरणं सर्वेषां पुत्रा पितृगणाः उम्मृताः ॥१९॥ वनिय की वृत्ति करने वाले वाहाण का देवे तो यहा तथा परलोक में कुल फल नहीं जैसे राज्य में घी जलाना वैसे पुनर्विवाह के लड़के को देवे तो राव के हमवत् व्यर्थ है ।।१८शा और इतर, पांचयों को देन में मेह रक्तमान मज्जा हट्टी होनी है। मा विज्ञान कहते हैं ।।१८।। असाधुओं से भ्रष्ट पक्ति जिन द्विजोत्तमो से पवित्र होती है इन पंक्तियों के पवित्र करने वाले सवाद्विज- श्रेष्ठों को सुना ।।१८।। जो चारों वेदों के जानने वाले और वेद के सम्पूर्ण श्रहों को जानने वाले, श्रोत्रिय, परमाने वेदा चयन जिन होता है उनका पक्तिपावन जान ।।१८४|| कठोपनिपढ़ में कहे प्रत का त्रिणाचिकेत कहते हैं उनका करन वाला भी त्रिणाचिकेत कहलाता है और पूर्वोक्त पञ्चाग्नि वाला वैम ही ऋग्वन के बामणोक्त व्रत करने वाला त्रिसुपर्ण कहलाता है और'छको का मानने वाला और प्रामविवाहिता स्त्री से उत्पन्ना हुआ और साम के आरएपक (गन विक्षन) का गान वाला इनका पंक्ति पावन जाने ।।१८। बैढ के अधे का, जानने वाला और उसी का पढ़ाने वाला और ब्रह्मचारी और महान गोदान करने वाला और सौं वर्ष का इनका भी पक्ति के पवित्र करने वाले जाने ॥१८॥