पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१९

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मनुस्मृति ०६ भापानुवाद सन्तानार्थ भी व्यभिचार न करना, अपुत्र को भी सद्गनि, विचार निन्दा, पतिवत प्रशंसा मार्या पूर्व मर जावे तो अग्निहोत्री का करीव १६७-१६८ गृहस्थधर्म का उपसहार १६ पष्ठाऽध्याय में- धानप्रस्थ होने की मामा और समय यनी को नास्याहारत्याग, अग्निहोत्र का साथ,'धन वास, शाक, मन, फलों से निर्वाह, पचय अनुष्ठान, जितेन्मियादि रहने का विधान भय मांस मौम-कत्रकादिन ग्वाना का क्या खावे, कब र खावे, संग्रह कितना रक वे, भूमि में सोवे इत्यादि नियम प्रीम में पश्चनम, जाड़े में जल में खड़ा होना आदि सहनशीलता आत्मा में वैतानिक अग्नि का समारोपण, सुम्बार्य यज न करना, मान पान की साधारणता, वा भरणपर्यन्त जल वायु मादि से ही निर्वाह वानप्रस्थ धर्म से मुक्ति सन्यासाश्रम की आज्ञा व ममय, तीन ऋणों को चुकाने की आवश्यकता, बिना चुकाये सन्यास लेने से अधोगति ३३-३८ सब प्राणियों को अभयदान, निष्कामता एकाकी रहना, भग्नि का त्याग, वृक्षमूलादि में रहना भाव, जीवन मरणा की उपेक्षा, छान फर जल