पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१९३

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मनुस्मृति भाषानुवाद करें कि 'यह शेप अन्न है । नव नामण इसको जैमा कहें वैसा करे ॥२५३॥ पितृश्राद्ध में स्वतितम खूब भोजन किया ऐसा कहे और गोष्ट पामे "सुश्रु तन सामहै और अभ्युदय श्राद्ध में सम्पन्नम् इस प्रकार कहे और देव द्धि मे 'कचितम् ऐसा कहे ॥२५॥ दोपहर का समय दर्भ बोर गावर से लेपन तिल और उदारता से अन्नादि का देना और अन्न का मंकार और पूर्वोक्त पंक्तिपावन ब्राह्मण थे श्राद्ध की मपनि हैं ।५५|| दर्भ और पवित्र और पाहला पहर और सब मुनियों के अन्न और जो पूर्वोक्त पवित्र ये हन्य की सम्पत्ति जानो ॥५६॥ मुनियों के अन्न दूध सोमलता का रस मांस जो पाया नहीं गया और सैन्धव नमक को स्वभाव से हवि कहते हैं ।।२५७। उन बामणों को विसर्जन करके एकान चित्त और पवित्र, मौनी दक्षिण दिशा में देखता हुआ. पितरों से अपन अमिलपित ये वर मांग कि-२५८।। "दावागे ना भिवर्धन्तां वेदा सन्ततिरेव च। द्धा च ने मान्मगगद् बहुधेयं च ना स्त्विति ॥२५९॥ [ असंच नो बहु मवेदतिर्थाश्च लमेमहि । याचितारश्च न मन्तु मा स्म याचिप्म कञ्चन ॥१॥ श्राद्धमुक पुनरश्नाति तदहयों द्विजा धमः । प्रयाति सूकरी योनि मिर्वा नात्र संशय ॥२] एवं निर्वपर्ण कृत्वा पिण्डोस्तास्तदनन्तरम् । गां विप्रमजमग्निवा प्राशयेदप्सु धाक्षिपेत् ॥२६०॥ पिण्डनिषएं केचित्तुरस्तादेव कुर्वते । बयोमिः खाइयन्त्यन्ये प्रक्षिपन्त्यनले प्मुवा ॥२६शा पतिव्रता धनपत्नी पितृपूजनतत्परा । मध्यमं तु तत पिण्डमद्यात्सम्यक सुतार्थिनी IR६२|| श्रायुप्मन्तं सुवै सूते यशोमेधासमन्वितम् । धनवन्तं प्रजावन्तं सात्विक धार्मिक तथा ॥२६शा प्रक्षाल्य हस्तावाचम्म