पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१९५

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१९२ मनुस्मृति मापानुवाद करते हैं और कोई पक्षियों को पिण्ड खिलाते हैं और दूसरे अग्नि या पानी में डालने हैं ।।२६१ सजातीय विवाहिता पतिव्रत धर्म की करने गली. श्राद्ध में श्रद्धा रखने वाली लड़के की इच्छा करने वाली स्त्री, उन ३ में स विधियुक्त बीच के पिण्ड का भक्षण करे ॥२६|| ( उस पिरडमक्षण से) दीर्घायु, कीर्ति और यश धारण काल बाला माग्यवान्, सन्तति वाला सत्वगुणी, धर्मामा पुत्र उत्पन्न करती है ।।२शा हायों को धोकर आचमन करके जात पाली का माजन करावे । सत्कार पूर्वक जाति वालों का अत्र दकर भाइयों का भी भाजन करावे ||२६|| वह ब्राह्मणों का उच्छिष्ट अन्न, ब्राह्मणों के विसर्जन तक रहे । उम के अनन्तर वैश्वदेव करें। यह धन की व्यवस्था है ।।२६५।। जो हवि पितरों को यथाविनि दिया हुआ बहुत कालपर्यन्त और अनन्त दृप्ति देता है वह सम्पूर्ण भागे कहते है-२६|| तिल, धान्य यव, उद्दा, जल- मूल और फल विधिवत देन से मनुष्यों के पितर एक मास पर्यन्त कम होते है ।।२७॥ मछली के मास से दो महीने तक, हरिण के मास से तीन महीन, मढा क मास से चार महीने पक्षियों के मास से पाच महीन (वृप्त रहते हैं। क्या अब भी मृतकश्राद्ध को प्रक्षिप्त न मानियेगा')R६८|| और बकरे के माम से छ. महीने, चित्र मृग के मांस से सात महीने, एण मृगकं मास से आठ महीने और रुरु मृग के मास से नौ महीने ॥२६९।। सूकर और भेसे के मांस से दश महीने वृप्त रहते हैं और शशा तथा कछवे के मांस से ग्यारह महीने (एप्ति रहती है )२७०॥" "सम्वत्सरं तु गन्येन पयसा पायसेन च । बाणिसत्य मासेन तृपिशवार्षिकी ||२७|| कालशाक महशल्का. खगलाहा- मिपं मधु । आनन्त्यायैव कल्प्यन्ते मुन्यन्नानि च सर्वश २७२।