पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१९६

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तृतीयाध्याय यत्किंचिन्मधुना मित्र प्रदद्यात् त्रयोदशीम् । तदप्यक्षयमेव स्याद्वर्षासु च मघासु च ।।२७३|| अपि न. स कुले जायायो नो दद्यात् त्रयोदशीन ! पायस मधुसपियो प्राक्छाय कुक्षरस्य चरिहा यद्यहदाति विधिवत्सम्यक्त्राद्धसमन्वित । तत्तत् पिठणां भवति परत्रानन्तमक्षयम ||२७|| कृष्णपने दशम्यान वर्जयित्वा चतुर्दशीम् । श्राद्धे प्रशम्तास्तिथया यथैता न तथेतरा' (२७६युक्षु कुर्वन् दिनर्वेषु सर्वान्कामान्समश्मुते । अयुनु तु पितृन्सर्वान्जा प्राप्नोति पुष्कलाम ॥२७॥ यथा वापर पक्ष. पूर्वपञ्चाविशिष्यते । तया श्ाद्धम्य पूर्वाहाइपराज्ञा विशिष्यते |२७|| प्राचीनात्रीतिना सम्यगपसव्यमतन्दिया । पिन्य- मानिवनात्कार्य विधिवदर्भपाणिना २०५|| रात्री श्राद्धं न सुपौत राक्षसी कीर्तिता हि सा । सन्ध्ययोरुभयोश्चैव सूर्ये चबा- चिरोदिते ॥२८॥ अनेन विधिना श्राद्धं त्रिरब्दस्यह निवपत् । हेमन्त मवर्गासु पाञ्चशिकमन्बाम ।।२८१|| न पट्टयजियो होमालौकिकेऽग्नौ विधीयते । न वर्शन विना श्राद्धमाहिताग्ने- जिन्यन ॥२८" गाय के दूध वा उस की चीर से १ वर्ष पर्यन्त और बाधीएस (लम्चे कान वाले वकर) के मांस से बारह वर्ष तृप्ति रहती है ।।२७१।। का नशाक महाशक (मलिया के भेद हैं) और गेंडा. लाल बकरा मधु और सम्पूर्ण मुनियों के अन्न अनन्त तृप्ति देते हैं ।।२७२।। पपा काल की मघायुक्त त्रयोदशी में श्राद्ध निमित्त (ब्राह्मण को ) जो कुछ मधुयुक्त देवे उस से अक्षय तृप्ति होती है। इस प्रकार का कोई हमारे का पे हो जो इम स