पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१९७

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मनुस्मृति भाषानुवाद को चनुरगी मे दूबा मा घन से युक्त भोजन देवे या हन्ती की पूर्व दिशा की छाया में देवे (यह पितर आशा करते हैं) Rogl अच्छे श्राद्धयुक्त जो कुछ विधिपूर्वक पिनरोंको देता है, वह परलोक मे पितरो की अक्षय ऋषि के लिय होता है || २५|| कृष्णाव में दशमी में लेकर चतुर्दशी बाद ये नथ श्राद में जैनी प्रशन है वैमी और नहीं ॥ २७ ॥ युग्मतिथि और युग्म नक्षत्रों में श्राद्ध करने वाला पुत्रादि सन्तति को पाता है ।।२७७। जैसे शुक्ल पक्ष से कृष्णपक्ष श्राद्धादि करने में अधिक फन का देने वाला है, वैस ही पहले पार से दूसरे पहर में अधिक फल होता है ।२७८॥ दहिने कन्ये पर यज्ञोपवीत करक, भाजप रहित हो, कुशा हाय में लेकर, अपसव्य हो शास्त्रानुसार सर पितृसम्बन्धी कर्म मृत्यु- पर्यन्त करे ।।२७५॥ रात्रि में श्राद्ध न करे। उस (रात्रि) को राक्षसी कहा है और दोनों सन्ध्यामओ तथा सूर्योदय से (छः घड़ी बा) थोडा दिन चड़े तक ममय मे भी श्राद्ध न करे।।R८०॥ इस विधि से एक वर्ष में तीन बार-हेमन्त, ग्रीष्म वर्षा में श्राद्ध करे और पञ्चयज्ञान्तर्गत श्राद्ध को प्रतिदिन करे ।।२८॥ श्राद्ध सम्बन्धी म लौफिक अग्नि में नहीं कहा है और आहिताग्नि आमणादि के अमावास्या से अतिरिक्त तिथि मे पाद्ध नहीं कहा है ॥२८॥ 'यब सर्पयत्याद्रि, पितॄनम्नात्वा द्विजोत्तमः । तेनैध कृत्स्नमाप्नोति पितृयज्ञक्रियाफलम् ॥२८॥ "ना द्विज स्नान करके जल से ही पितृतर्पण करता है, उसी से सम्पूर्ण नित्य श्राद्ध का फल पाता है ।।२८शा" वसन्वदन्ति तु पितन्द्रांश्चैव पितामहान् । प्रपितमहांश्चादित्यान्श्रुतिरेषा सनातनी ।।२८४।। ३ त