पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२०६

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चतुर्याऽध्याय प्राणानवात्त मिच्छन्ति नवान्नामिपगर्छिन ||PAN अग्निहोत्री ग्रामणादि दीर्घ आयु की इच्छा करने गला नवीन अन से इष्टि किचे विना नवान्न भक्षण न कर और पनुयाग किये बिना मांस भन्नण न करें ।।२खा नवीन अन्न और पशु मे वजन किये विना अग्नि इनके प्राणों को खाने की इच्छा करते हैं क्योंकि अग्नि नवीन अन्न और मांम के अन्यन्न अभिलाप वाले हैं" । (इस प्रसङ्ग में पश्याग का अर्थ पशु के धृतादि मे यथार्य लेकर बोर्ड लोग २६ ३ का समाधान करने हैं परन्तु आगे २७ च के अर्थ बार में मांस का वर्णन श्राने से स्पष्ट जान पडना है कि यह लीला हिमकों की है। यह देवकार्य है और मनु एकादशाब्याय में माम देव भजन नहीं किन्तु राक्षसी वा पैगाच भोजन कहेंगे । इसलिये ये श्लोक हमारी सम्मति में मनु के विरुद्ध होने से प्रचित हैं | आमनागनशय्य मिरहिमलफलेन नास्य कश्चिद्वसदाह शक्तिता नचिताजीथिः ॥२६, पापरिडनो विकर्मस्यान्वीडालबतिकाञ्छान। हतुकान्वक्रवृत्तींश्च वाङमाणापि नाचम् ॥३०॥ आसन भोजन शव्या जल मूल वा फल से थाशक्ति विना पूजन किया कोई अनिधि इस (गृहन्ध ) में घर में न रहे ॥२९॥ परन्तु पाखण्डी और निषिद्ध कम करने वाला विडालन बाली राठों वेद में श्रद्धान रखने वालों और वत्ति वालों को वाणी मात्र से भी न पूजे ॥३०॥ बेदविद्यावतस्नाताश्रोत्रियान्गृहमेधिनः । पूजयेहव्यकव्येन विपरीताश्च वर्जयेत् ॥३१॥