पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२०८

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तृतीयाऽध्याय २०५ कालीन रहन सहन एटीकेट ] है जो मनु ने अपने समय में नियमबद्ध किया था। इस मे से जो र वाते धोऽधर्म मे कारण हैं, वे वे ग्राा अपाय है। शेष देशकाल की रीति नीति मात्र थी जो बहुत सी अव आवश्यक नहीं रही ) ||३५|| बांसकी छड़ी जल भरा लोटा, यज्ञोपवीत, वेद पुस्तक और अच्छे सोने के दो कुण्डल धारण करे ॥३॥ नेतान्तमादित्यं नास्त यान्तं कदाचन । नोपसृष्टं न वारिस्थं न मध्यनभसा गतम् ॥३७॥ न लड्धयेद्वत्सतन्त्रीं न प्रधावेच वर्षति । न चोदके निरीक्षेत एवं रूपमिति धारणा ||३|| उचय और अस्त होते हुवे सूर्य को कभी न देखे,ग्रहोसे मिलने पर और जलमें सूर्य का प्रतिविम्व और बीच आकाश में भी सूर्य को न देखे (इस से दृष्टि की हानि होती है) ॥३७॥ और । बछड़े के धन्ये होते उसके रस्से को न लांघे, पानी वर्षतमें न दौड़े, अपना स्वरूप पानी मे न देखे ऐसा नियम है ।।३८|| मृदं गां दैवतं चित्र घृतं मधु चतुष्पथम् । प्रदक्षिणानि कुर्वीत प्रज्ञातांश्च वनस्पतीन् ।॥३६॥ नापगच्छेत्प्रमशोऽपि स्त्रियमार्तवदर्शने । समानशयने च न शयीत तया सह ॥४०॥ मिट्टी के टीलो, गौवो, यज्ञशालाओ, ब्राह्मणों, घृत और मधुके समूहो. चौराहों और बड़े प्रसिद्ध र बनस्पतियो को दक्षिण और करके जावे ||३९॥ कामात पुरुष भी रजस्वला स्त्री के पास न जावे और उसके साथ बरावर वित्रौने पर भी न सोवे ॥४०॥