पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२१

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मनुस्मृति अ०७ भावानुवाद त्यागना, संन्यास से मुक्ति, सन्यास धर्म का उपासहार राजधर्मवर्णन की प्रनिशा ६५-६७ सतमाऽध्याय में- राजधर्मवर्णन को प्रतिज्ञा, गाजा के बिना हानि, राजोत्पत्ति का प्रयोजन, राजा का हैव बल सूर्यादि के समान तेज, राजा का प्रभाव, राजनियम का मान्य दण्ड की उत्पत्ति दण्ड की बडाई न्यायपूर्वक दएइ चलाना, दण्ड न होताहानि, अनुचित दण्ड से राजा प्रज्ञाकानाश १५-२६ मूढत्यादिदेोपयुक राजा दरड को न्यायपूर्वक नही दे सकता किन्तु पवित्र सत्यवादी गुणवान ही दे सकता है, स्वराज्य परराज्यादि मे बर्ताव का मेद, इसप्रकार के राजाके लाभ, विपरीतकी हानिये उत्तम राजा के कर्त्तव्य वर्णनकी पुन प्रतिक्षा. राजा को प्रामाणादि वृद्धोंका मानना,उनसे विनयसीखना, अधिनय से हानि और विनय के लाभ ३०-४०

  • श्लोकों में वितयाविनय के ऐतिहासिक प्रमाण' ४१-४२

राजा को त्रयीविद्यादि सीवना, जितेन्द्रिय हे ना. के और क्रोधके ८ व्यसनास वचना, लाम १८ हैका मूल है किन लक्षणों के ७ वा ८ मन्त्री रखने उनसे मन्त्र (सलाह ) काना मन्त्रियों से मन्त्र करने की रीति, उनका विश्वास करना अन्य अधिक अपेक्षिन मन्त्री बढ़ाना, दन का वर्णन, लक्षण बड़ाई, दूतसे स्वय सावधानरहना ५७-६८ काम ४३-५६