पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२१५

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मनुस्मृति मापानुवाद कांसे के बर्तन में कभी पैर न धुवावे. फूटे बर्तन में भोजन न करे और विरोध वाले के घर भोजन न करे ॥३५॥ जूता, कपड़ा. यज्ञोपवीत. अलङ्कार पुष्पमाला और कमण्डलु दूसरे के घोड़े पहले वर्ते हुवे धारण न करे ॥६॥ नाविनीतै जेद् दुपैन च क्षुयाधिपीडितः । न मिनङ्गाषिखुरैर्न बालधिविरूप्तिः ॥६७॥ विनीतैस्तु बजेनित्यमाशुगेर्लक्षणान्वितैः । वर्णरूपोपसम्पन्न प्रतादेनातुदन्भृशम् ॥६॥ अशिक्षित नधा व्याधि से पीड़ित तथा सींग आंख और खुर से खण्डित घोड़ो या चैलो की सवारी न करे। लांडे वैलों से याना न करे।।६। किन्तु शिक्षित तथा अच्छे प्रकार शीत्र चलने वाले शुभ लक्षण युक्त वर्णरूप सहित (अश्वादि) से प्रतोद (कोड़) से निरंतर न चुभाता हुआ यात्रा करें ।।८।। वालातपः प्रतधूमो वयं भिन्न तथासनम् । न छिन्यानखलोमानि दन्तैत्पिाटयेनखान् ।।६।। न मृद्रोष्टंच मनोयान्नच्छिन्धाकरजैस्तृणम् । न को निष्फत कुर्याभायत्यामसुखेादयम् ॥७०॥ उदय काल का घाम और जलते मुझे का धुआं और टूटा आसन त्याज्य हैं । रोम वानखो को न उखाड़े तथा दांतों से नखो को न उपाड़े दि पुस्तकों मे ६९ वें घीच में यह अब श्लोक अधिक पाया जाता है (श्रीकामावर्जवैनित्यं मृण्मये चैव भोजनम् ) । -