पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२२२

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'चतुर्थाऽध्याय २१९ फिर उठ कर दिशा जगल होकर पवित्र हो एकाग्रचित्त से त्रात सन्ध्यार्थ बहुत काल पर्यन्त जप करना रहे और मायं सन्ध्या को भी अपने काल में देर तक करे ||९३।। क्योंकि पि- लोग दीर्घ सन्ध्याके अनुमान से दीर्घ आयु, प्रज्ञा, यश. फीति तथा ब्रह्म तेज को भी पा सकते हैं ॥१४॥ श्रावण्यां प्रौष्टपद्या बालप्युपाकृत्य यथाविधि । युक्तश्छन्दांस्यधीयीत मासान्विार्धपंचमान् ॥६५॥ पुष्ये तु छन्दसां कुर्याद् यहिरुत्सर्जनं द्विजः । मावशुक्लस्य वा प्राप्ते पूर्वाद प्रथमेऽहनि ॥६॥ ब्राह्मणादि श्रावणी वा भाद्रपदी पौर्णिमा को उपाक्रम करक साडेचार मास मे उद्यत होकर वेदाध्ययन करे ।।१५।। पुण्यनक्षत्र पाली पौ मा (पीपी) मे था माघ शुक्ला के प्रथम दिन के पूर्वाह में वेद का उत्सर्जन कर्न (ग्राम के) बाहर जाकर करे ।।९।। यथाशास्त्रं तु कृत्वैवमुत्सगं छन्दसा बहिः । विरमेक्षणी गत्रिं तदेकमहर्निशम् ।'६७।। श्रा ऊचं तु छन्दामि शुक्जेषु नियतः पठेत् । वेदाङ्गानि च सर्वाणि कृष्णपक्षेषु पंपठेत् ॥६८ । शान्त्र के अनुसार (पाम के) बाहर वेदों का उत्सर्जन कर्म करके दो दिन और एक बीच की रात्रि भर अनाय करे या उसी दिन और रात्रि का अन्नध्याय करे ।।१७। उन्सर्जन अनध्याय के उपरान्त शुक्लपक्ष में निमय पूर्वक वेद और कृष्णपक्ष में वेदों के सम्पूर्ण अङ्गों को पढ़ा करे ।।९८॥ नाविस्पष्टमधीयीत न शूद्रजनसनिधौ ।