पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२२४

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दतीयाऽध्याय रहें। ऐसा मनु कहते हैं ।। (यह श्लोक भी स्पष्ट मनुप्रोक्त नहीं है तथा .१०५ -१०६ से पुनरुक्त भी है)।१०। इन विद्य दादि को अग्निहोत्र के क्षेम समय उत्पन्न होते जाने तो न पढ़े और उसी समयमें विना वर्षा ऋतुके वादल दीखे चो भी अनध्यार करो१०४। निति भूमिचाने ज्योतिषां चोपसर्जने । एतानाकालिकान्विद्यादनध्यायानृतावपि ॥१०॥ पार्दुष्कृतेष्यग्निः तु विद्युत्स्तनित निःस्वने । सज्योतिः स्यादनध्यायः शेषरात्रौयथादिवा ॥१०॥ • अन्तरिक्ष में उत्पात शब्द होने और भूकम्प और मूर्यादिको के उपद्रव में जिन ऋतुओं में मूकम्पादि हुषा करते हों उन में भी जव तक उपाव रहे तब तक अनभ्याय करे ॥१०॥ होमार्थ अग्नि प्रकट होने के समय बादल मे विजुली का शब्द हो तो दिन भर का अनध्याय करे और शेष समयो वा रात्रि में पूर्वोक्त दिन के समान "आकालिक" अनध्याय करे ॥१०६|| नित्पानध्याय एव स्याद्ग्रामेषु नगरेषु च । धर्मनैपुण्यकामानां पूतिगन्धे च सर्वदा ।।१०७।। अन्तर्गतशवे प्रामे पलस्य च सन्निधौ । अंनध्यायारुद्यमाने समवाये जनस्य च ॥१०॥ धर्म की अतिशय इच्छा वालो को श्रम वा नगर में सर्वदा अनध्याय (किन्तु एकान्त जङ्गल में पढना उत्तम है) और दुर्गन्ध ' में कभी पढ़ना नहीं चाहिये ॥१०७|| जिस में मुर्गा पड़ा है। ऐसे छोटे ग्राम में और अधर्मी के पास और रोने तथा भीड में न पढ़े ॥१०॥