पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२२७

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३२४ मनुस्मृति भापनुवार न ना न खरं नोट नेरिणस्थो न यानगः॥१२०॥ उपाकर्म और उत्सर्ग में तीन रात्रि अनध्याय कहा है। अष्ट- काओं में एक दिन रात्रि और ऋतुकं अन्त की १ रानिमें अनध्याय करे॥११९॥ घोड़े पर बैठा हुवा और वृक्ष पर चढ़ा हुआ न पढ़े और हाथी. नाव, गधा, उंट,और ऊपर भूमि और गाड़ी आदि पर भी बैठ कर न पढे ॥१०॥ न विवादे न कलहे न सेनाया न सगरे । न मुक्तमानाजीणं न बमिन्या न सूतके ॥१२॥ अतिथिं चाऽननुज्ञाप्य मारुतेवाति घा भृशम् । रुधिरे च नु ते गात्राच्छरत्रंण च परिक्षतं ॥१२२॥ विवाह मे, झगडे में सेना में, लड़ाई में तत्काल भाजन करके अजीर्ण मे बमन करके और सूतक मे न पढ़े ॥१२१।। अतिथि की आजा बिना वायु के बहुत प्रचण्ड चलने और शस्त्रसे पा फोड़े से शरीरका रक्त निकलते (न पढ़े) ॥१२शा सामध्वनाबुग्यजुपी नाधीयीन कदाचन । वेदस्याधीत्य वाप्यन्तमारण्यकमधीत्य च ॥१२३।। "ऋग्वेदो देवदैवत्यो यजुर्वेदस्तु मानुप'। सामवेट. स्मृत. पिन्यरतरमातम्याऽशुचिर्ध्वनिः ॥१२४. साम की ध्वनि मे ऋग्वेद और यजुर्वेद कभी न पढ़े और वेदान्त था वेद के श्रारण्यक को पढ़ कर (तत्काल ) वेद न पढ़े ॥१२३॥"ऋग्वेद देवताओका है यजुर्वेद मनुष्यसम्बन्धी और पिल- सम्बन्धी साम है । इसकारण उसकीध्वनि अशुचि है। ऋग्यजुसाम के पाठ से पढ़ने वाला जान सकता है कि उन मे देव मनुष्य और