पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२३

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मनुस्मृति म०७ ( २० ) भाषानुवाद अधिक कर से नवाचे नम्र, कर दोनों भात्र रक्ने १२७-२४० अपने को रोगादि हो तो मन्त्री से काम ले, मजा रक्षान करने की निन्दा, ग्राममुहर्शमें उठना, सध्या अग्निहोत्र, ब्राह्मण सुश्रूषा करना, गंजसमामें जाकर प्रजा के व्यवहार (मुकदमे देखना, प्रजा का विसर्जन करके एकान्त देश में मन्त्र फरना, गूगे चहरे आदि को मन्त्र समय दूर भगाना, परन्तु आदरपूर्वक मन्त्रियों की परस्पर विरुद्ध मम्मतियों से सार निकालना, कन्या और कुमारौं पर राजा का कर्तव्य, दूत भेजना, कार्य शेप को जानना आढान विसर्गादि ८ कर्म, ५ वर्ग आदि का विचार, शत्रु मित्र उदासीन को चेताओं पर ध्यान, अमात्य आदि ७२ प्रकृतियों का वर्णनः सामादि उपायों का प्रयोग, सन्धि विमहादि ६ गुण, सन्धि विग्रहादि के अधमर मोर भेद कव सन्धि, कव विग्रहादि, कै २ प्रकार के करने, यदि मित्रोंमें भी भीतरी दुर्भाव देखेनो लड़े मित्रादि अधिक न बढ़ावे, वर्तमान भार भविष्यत् का विचार स्यने, चनाई कैसे समय में, किस प्रकार करे, चढाई के समय अन्य मिठासीनादि कैसे कैमा व्यवहार कने, दण्ड शकटादि न्यूह रचना और आप पन व्यूह में रहे १७७-१८८ सेनापति सेनाध्यक्ष के संग्राम में कार्यमाग, स्थान में किन २ साधनों से लड़े, कुरुक्षेत्रादि वीर भूमि के वीरों को आगे रफ्ने, उन्हें प्रसन्न रक्खे