पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२४

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मनु० विषयसूची । २१ ) लड़ने हुवों पर भी दपि रक्खे. शत्र के मेजिनादि को विगाड़े, शत्रु के मन्त्री आदिको फोड़े, यथाशक्ति युद्ध को बनावे, जोन कर ब्राह्मणों का सत्कार करे, अभय को डौंडी पिटवावे, जीने हुये राजा को गही से उतार कर उनी वंश के योग्य पुरुष को वैठाचे १८६-२०२ शत्रु के प्राचीन रिवाजो को प्रमाण माने, रत्नों से शत्रु का सत्कार करे, देने से सब प्रसन्न और लेने से अप्रसन्न होते हैं, दैव की चिन्ता न करे, मानुष यत्न करे वा शत्रुले मिलकर लौट आये, किस प्रकार के मनुष्यकोमित्र वा पाणिग्राहादि थनावे, शत्रुमित्र उदासीन के लक्षण, अपनी रक्षा के लिये उत्तम से उत्तम भूमि को भी त्याग दे २०३-२१२ धन,स्त्री, आत्मामें उत्तरोत्तरक्षा, बहुत आपत्तियों में सामादि सब उपाय एक साथ करना, राजा का व्यायाम, स्नान, अन्तःपुर में विश्वासपात्रादि के हाथ का भोजन, भोजन में विष की परीक्षा, मेजन शयनादि में यत्र रखना, स्त्री क्रीडा, फिर वाहनायुधादिको संभाल, साय सन्ध्या करके बाहर

  • के गुप्त विचार और सूचनाओं का सुनना, फिर

भोजनार्थ अन्त पुर में जाना २१३-२२६ -अष्टमाऽध्याय में- व्यवहार (मुकदमे देखने में मन्त्रियों की सहायता लेनी, शास्त्रीय और लौकिक हेतुओंसे निश्चय करना और ऋण न देना आदि १८ विवाद के स्थान 4