पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२३४

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चतुर्थोऽध्याय अभ्यास करता है। उस बंगाम में अननमुन्य (मान) को नागना मरिना ना मानो शानिगम मग मावान्या तथापी मामी आदिपा में करे गोर इमन्त शिशिर ऋतु की कृपा अष्टमी और नमिया में वश्राविधि पितरों का (विशेष) पान करें। (नन्दन टीकामार ने मावित्रान मावि या पाठ की बाधा की) जिस प्रकार निा भी एक का सत्कार करते ही हैं परन्तु आगाडी गुरुपूर्णिमा में विशेष गुण पनन को रोनि है । इसी प्रकार माता पिता प्रादि निगमकार के अतिरिक्त हेमन्त पार शिशिर की कृपक्ष की ४ अष्टमी और ४ नवमियां मे पितृपूजा का विगेर उन्मत्र जाना ||१०|| दगडावपयान्मत्रं नगन्पाढायमेचनम् । उनिपटाननिक व दरान ममानोन ॥१५॥ व प्रसाधनं ग्नानं बनवाबनम जनम् । पूर्वाद एव कुर्मान देवनानां च पूननम् ॥१५॥ गृह ने मल. मूत्र और पैर धीना और जुटन का त्याग भी दूर ही करे ।।११।। मल का त्याग शरीर शुद्धि, म्लान बन्नधाश्न अचान और देवताक लिये हम येक प्रश्रम पहर में कर पा देवनान्यभिगच्छन धार्मिकश्चिद्विजाचमान् । ईश्वरं चैत्र रक्षार्थ गुस्नेव च पर्वसु ॥१५३॥ अभिवादयेद् वृद्धाश्च दद्यारुचवामनं स्त्रकम् । कनाञ्जलिमपासीत गन्छनः पृष्ठातान्वियात् ॥१५४॥ यशालाग्नी धार्मिक ब्राह्मणों और गुम्नओं के मिलने वा श्वर की उपासना गथपनी रक्षा के लिये पर्यों में जावे ॥१५३||