पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२३५

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मनुस्मृति भाषानुवाद (घर मे आये ) वृद्धों को नमस्कार करे और धैठने के लिये अपना श्रामन देवे और हाथ जोड़कर उन के पास रहे और चलते हुओ के पीछे २ (थोडी दूर) चले ॥१५४॥ श्रुतिस्मृत्युदिनं सम्पङ निवद्धं स्वेषु कर्मसु । धर्ममूनं निपेवेत सदाचारमतन्द्रितः ॥१५५॥ आचाराल भने घायुराचारादीप्सिताः प्रजाः । पाचाराद्धनमक्षश्यमाचारो हन्त्यलक्षणम् ॥१५६॥ वेद और स्मृति में कहा हुवा और अपने कर्मों में नियम से बांधा हुआ और धर्म का मूल जो सदाचार है, उस को बालस्य रहित हाकर सेवन करे ॥१५५॥ आचार से आयु, इच्छित (पुत्र पौत्रादि) सन्तति तथा अक्षय धन प्राप्त होता है और प्राचार अशुभ लक्षण का नष्ट करता है ।।१५६॥ दुगचारोहि पुरुषो खोके भत्रति निन्दितः । दुःखभागी च सततं व्याधिताऽल्पायुरेव च ॥१५७|| सर्वलक्षणहीनोऽपि यः सदाचारवानरः । श्रद्धानोऽनमूयश्च शतं वर्षाणि जीवति ॥१५॥ दुष्ट आचरण करने वाला पुरुष लोक मे निन्दित, दुख का भागी, निरन्तर रोगी रहता तथा अल्पायु भी होता है ।।१५५|| साधुओं के प्राचार करने वाला, श्रद्धायुक्त और दूसरों के दोषों को कहने वाला पुरुष चाहे सम्पूर्ण अन्य शुभ लक्षणांसे रहित भी हो तो भी सौ वर्ष जीता है (तात्पर्य वड़ी आयु से है) ॥१५८॥ यद्यत्परवशं कर्म तत्तात्लेन वर्जयेत् । यवहात्मवशंतु स्यात्तत्तत्सेवेत यत्नतः ॥१५६।। ॥