पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२५

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मनुस्मृति म०८ (२२) भाषानुवाद सनातनधर्मानुसार निर्णय करना, राजा स्वयं न करे तो विद्वान् ब्राह्मण से निर्णय कराये, उस अधिकारी और मत्य ३ सम्यों की सावधानी भोर सावधानी न करें तो उन को दोप या तो सभा में न जावे, जाधे तो धर्मानुसार कहे, विपरीत कहने धा चुप रहने का दोष, धर्म का महत्त्व, अधर्म करने से राजा, मन्त्री, साक्षी आदि को दोप के भाग, शूद्र को न्यायालन न देना राज्य में वृद्धि न होने देना, न्यायामन पर बैठने का प्रकार, कमपूर्वक कार्य ( मुकामे । देवना चेष्टा आकारादि से हदगन भाव पहचानना, बाल वा स्त्रियों आदिक स्वत्वको गजा समावर्त- नादि तक रक्षा करे, जीवता स्त्रियों का भाग छीनने घाले कुटुम्बियों को चार दरड नष्ट स्वामिक द्रव्य की पक्षा, उसके लौटने में छान बीन, उसमें से राज भाग लेना और उस की रक्षा करना इत्यादि २५-३६ ब्राह्मण को धरा दवा धन मिल जावे तो स्वयं रकने, राना को मिले तो आधा दान करे, चारीका माल राजा स्वय न ले जातिधर्मादि के अनुसार विचार करना, राजा वा राजगुरुप स्वय मुफबुमे न उत्पन्न करें, अनुमान से न्याय में काम ना, सत्य साक्षो, देशकालादि का विचार, देशधर्मादि के अविरोध से निर्णय करना उत्तमर्ण का घन अधमर्ण से दिलाना, नटने वाले का एण्ड, अधमर्ण नटे तो उत्तमण को प्रमाण देने