पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२४१

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मनुस्मृति भाषानुवाद सम्बन्धिनाह्यपालाके पृथिव्यां मातृमातुलौ ॥१३॥ आकाशेगास्तुविज्ञेया घालवृद्धशातुराः । प्राता ज्येष्ठः समः पित्रा मार्या पुत्रः स्वकातनुः॥१८॥ भगिनी और पुत्र वधू आदि अप्सरा लोक की स्वामिनी हैं। और वैश्वदेव लाक के बान्धव और जललाक के सम्बन्धी लोग और भूलोक के मां और मामा स्वामी हैं (इन सब की कृपा से इन की प्राप्ति होती है) ॥१८॥ और बालक वृद्ध कृश, पातुर ये आकाश के स्वामी (निराधार) हैं। और ज्येष्ठ भ्राता पिता के तुल्य है। भार्या और पुत्र अपने शरीर के तुल्य है (इससे इनसे विवाद करना उचित नहीं) ॥१८॥ छायास्वादासवर्गश्च दुहिता कृपणं परम् । तस्मादेतैरविक्षिप्त सहेता संज्वरः सदा ॥१८॥ प्रतिग्रहसमर्थापि प्रसंमं तत्र वर्जयेत् । प्रतिग्रहेणवस्याशु बाज तेजः प्रशाम्यति ॥१८६॥ हासवर्ग अपनी छाया के तुल्य हैं और कन्या परम कृपापात्र • है। इससे इनमे कुछ बुरा कहा गया भी सर्वदा सह लेवे बुरा न माने (यदि इस धर्म पर चले तो आज कल मुकद्दमेवाजी द्वारा क्यों सत्यानाश हो। पुत्र वधू आदि देववधू उत्तमाङ्गनाओ के तुल्य होने से अप्सराओं के तुल्य घर की शोभा है। बान्धव लोग विश्वेदेवों के समान सर्वत, सुखनायक और सहायक हैं। साले आदि काम सुखदायक होने से जल के गुण शान्ति के दाता हैं। माता मामा आदि मापन में पृथिवी के तुल्य उत्पत्ति की भूमि ||१८|| प्रतिग्रह लेने को समर्थ होने पर भी उस में फंसा- आसक्त न होवे क्योंकि प्रविग्रह लेने से वेद सम्बन्धी तेन शीघ्र