पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२४७

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२४४ मनुस्मृति भाषानुवाद ध्यानं प्रसादा भाधुर्यमार्जवं च यमा दश ॥१॥ अहिसा सत्यवचनं ब्रह्मचर्यमकल्पता । अस्तेयमिति पंचते यमाश्चापब्रतानि च ॥२॥ शौचमिच्या तपादानं स्वाध्यायोपस्थनिग्रहौ । व्रतोपवासौ मौनं च स्नानं च नियमा दश ॥३॥ अक्रोधगुरुसुश्रूषा शौचमाहार लाघवम् । अप्रमादश्च नियमाः पञ्चवापतानि च ॥४॥ आनृशंस्य क्षमा, सत्य, अहिंसा, टम, अस्पृहा, ध्यान प्रसन्नता मधुरता ये दश यम ।।शा अहिंसा, सत्यवचन, ब्रह्मचर्य, बनावट न करना चारीत्याग, ये ५ यम और उपनत भी कहाते हैं ।।२।। शौच यन्त्र तप, दान, स्वाध्याय, उपस्थेन्द्रिय का निग्रह व्रत, उपवाम, मौन, स्नान, ये १० नियम है ॥शा क्रोध न करना गुरु की सेवा, शौच, हलका भोजन, प्रमाद न करना, ये ५ नियम और उपनत भी कहा है) ॥२०४॥ नाश्रोत्रियतते यज्ञे ग्रामयाजिकते तथा । स्त्रिया क्लीवेन च हुते मुजीत बामणः क्वचित् ।२०५॥ अश्लीलमेतत्साधूनां यत्र जुहत्यमी हविः । प्रतीपमेतद्देवानां तस्मात्चत्सरिवर्जयेत् ॥२०६॥ निस यज्ञ में आचार्य वेदपाठी न हो और जिस मे समस्त ग्राम भर (विना विवेक) का अध्वर्यु तथा स्त्री वा नपुंसक होता हो ऐसे यज्ञ में ब्राह्मण कमी भोजन न करे ।।२०५|| जिस यज्ञ में पूर्वोक्त होता आदि काम करते हैं वह सज्जनों को बुरा लगने वाला और विद्वानों को अप्रिय है। इस से उसमे भोजन न करे ||२०||