पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२४९

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मनुस्मृति भाषानुवाद उग्रान्नं पूतिकान्नं च पर्याचान्तमनिर्दशम् ॥२१२॥ . लोगों में पातकोसे प्रसिद्ध हुने का, नपुंसक का, व्यभिचारिणी का, दम्भी का और खमीर वाला खट्टा सज़ यासी तथा शूद्र का भाजन करके बचाहुआ अन्न (भाजन न करे) IR१शा वैध शिकारी अर(बदमिजाज) जूठनखाने वाले, उग्रस्वभाव और सूतिका का एक के अपमान में दूसरा भोजन करे वह और सूतक नित्ति न हुवे का अन्न (न भाजन करें) ॥२१॥ अनर्चित वृथा माममवीरायाश्च यो पतः । द्विपदन नगर्यन्नं पतितानप्रवचनम् ।।२१३|| पिशुनातिनाश्चास' ऋतुविक्रयिणस्तथा । शैल्पनुन्नवायानं कृतघ्नस्पानमेव च ॥१४॥ बिना सत्कार के दिया हुआ, वृथा अन्न, मांस, जिस स्त्री के पति पुत्र न हों उसका शत्र का, प्रामाधिपति का जाति के निकाले का और छीका हुआ अन्न (३ पुस्तकों में नगर्यन्न कदर्यान्न पाठ है । यही अच्छा भी प्रतीत होता है) ।।२१।। चुगलखोर. झूठी गवाही देने वाले यज्ञ बेचने वाले, नट, सौचिक = दर्जी और कृतघ्न का अन्न (न भोजन करें)॥२१४|| कर्मास्य निपादस्य रनावतारकस्य च । मुवर्णकतु बैणस्य शस्त्रविक्रयिणस्तथा ॥२१५॥ श्वरतां शौण्डिक नांच चैलनिर्णेजकाच । रञ्जकस्य नृशंनस्य यस्य चोपरतिग है ॥२१६॥ लोहार, निपाद, तमाशा करने वाले. सुनार वाम का काम बनाने वाले शास्त्र वेचनेवाले २१५) और कुत्ते पालनेवाले. कलाल,