पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२५५

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मनुस्मृति भाषानुवाद धर्माय नापयुड्के च न तस्करमर्चयेत् ।। जा ब्राह्मण दानपात्र बना हुआ प्रतिमह लेकर बुरे कामो में लगाता हो उसे कुछ नदे। जो चारों ओर से प्रतिप्रह लेकर धन सञ्चय करे, परन्तु धम के कामों में न लगाये, उस तस्कर को न पूजे ॥२२॥ दोप न लगाकर कोई अपने से कुछ मांगे तो यथा शक्ति कुछ न कुछ देवे ही, क्यो कि देने वाले का वह पात्र भी कभी मिल जावेगा जो कि मव से तार देगा |Rat चारिदस्तृप्तिमाप्नोति सुखमक्षयमन्नदः । तिलप्रदः प्रजामिष्टां दीपदश्चक्षुरुत्तमम् ॥२२६॥ भूमिदो ममिमाप्नोति दीर्घमायुहिरएपदः । गृहदो प्रयाणि वेश्मानि रूप्यदोरूपमुत्तमम् ।।२३०॥ जल देने वाला वृमि, अन्न का देने वाला अक्षय सुख, विल का देने वाला यथेष्ट सन्तति और दीपक देने वाला अच्छी प्रख पाता है ॥२२९॥ भूमि देने वाला भूमि सोना, देने वाला दीर्घायु, घर देने वाला अच्छे महल और चांदी देने वाला अच्छा रूप पाता है ।। (एक पुस्तक में भूमिमाप्नोति सर्वप्रेति पाठ है)।२३०॥ वामोदश्चन्द्रसालोक्यमश्विसालोक्यमश्वदा । अनड्दा श्रियं पृष्ठां गोदा बध्नस्यविष्टपम् ॥२३१॥ यानशय्याप्रदा भार्यामश्वर्यमभयप्रदः। धान्यदः शाश्वतसौरुषं ब्रह्मदेानमसाष्टिताम्।।२३२॥ वस्त्र देने वाला चन्द्रसमान लो - शरीर पाता है। घोड़े का देने वाला अश्य वाले की जगह पाता है । बैल का देने वाला