पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२५६

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और गौ देने वाला सूर्य के तुल्य प्रकाश को पाता एक पुस्तकमें अश्विसालोक्य सूर्यसालोक्यपाठ है) ।।२३१॥ सवारी और शव्यांका देने वाला मार्या. अभयका देने वाला राज्य, वामा निरन्तर सुन और वेद देने वाला ब्रह्म के प्रार २५३ सर्वेषामेव दानानां ब्रमदानं विशिष्यते । चार्यन्नगामहीवासस्तिलकांचनसर्षियास् ॥२३३॥ येन येन तु भावेन यबहानं प्रयच्छनि । भावेन प्राप्नोति प्रतिपूजितः ॥३४॥ जाले अन्न गीय भूमि वस्त्र तिल सुवर्ण और घृत, इन सब दानों सेवामान (वेद का पढ़ाना) अधिक है ।।२३शा जिस जिस भाव दान देता है उसी २ भाव से दिया हुआ सत्कार पूर्वक योचित प्रतिगृहाति ददात्यर्चितमेव च। तावमी, गच्छता स्वर्ग नरकं तु विपर्यये ॥२३॥ विस्मयेत तपसा वदेदिष्ट्वा च नानृतम् । माताध्यपवदेविप्रान्त दत्वा परिकीतयेत् ॥२३॥ सत्कारपूर्वक दान लेता है और जो सरकार पूर्वक देता है स्वर्ग में जाते हैं और उस के विपरीत करने वाले दोनों जाते हैं ॥२३॥ से २२५ तक दान का माहात्म्य है। जल प्रत्यक्ष तृप्ति अन्न भोजन से जैसा सुख मिलना प्रसिद्ध है वैसा नहीं . तिलो में सन्तानोत्पादन का प्रभाव है। जब