पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२५७

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२५४ मनुस्मृति भाषानुवाद स्त्रियों का रज रुक जाता है वा सन्तानोत्पत्ति में बाधा होती है तब वैद्य तिल प्रधानभाजन बनाते हैं। जैसे गालीदेने वाले गालीखाते हैं वैसही जानन्यांके लिये मलाई करेगा यह परमात्मा की व्यवस्थासे वैसे हीमलाई पावेगा । सानेके वर्क ग्यानेस आयु बढ़ना वैद्यककामी मत है। जैसे पृथिवी का किमान बीज देते हैं पृथिवी उन्हें बीज देती है। कृप लोगों को जल देता है तो उसका जल चढता है। चन्द्रमा का रूप सन्निय उपमा मे भी लिया जाता है । वस्त्रकी स्वतता प्रशंसनीय है और चन्द्रमा की भी थैल-कृप्यादि से वैश्य कीलक्ष्मी बढ़ाने वाले है। दानके परिमाणानुसार फलका परिमाण वा देश काल बस्तु श्रद्वा आदि के अनुसार फन की न्यूनाधिकता माननी ही पड़गी ) २३५|| तप करके आधय न करें (किमेरातप बहुत है ) यज्ञ करके असत्य न बोले (कि मैंने यह किया और वह किया)पीडित होने पर भी विप्रो की निन्दा न करे और दान देकर चारा ओर (लोगों से) कहता न फिरे ॥२३॥ यज्ञोऽनतेन क्षरति तपः क्षरति विस्मयात् । आयुधिप्रापवादेन दानं च परिकीर्शनात् ।।२३७॥ धर्म शनैः संचिनुयाद्वल्मीकमित्र पुचिकाः । परलोकमहायार्थ सर्वभूतान्यऽपीडयन् ॥२३८॥ असत्य भापण से यज्ञ नष्ट होता है। विस्मय से तप तथा बामणो की निन्दा से आयु और चारों और कहने से दान घटता है ।।२३४ा परलोक के हित के लिये सम्पूर्ण जीवो का पीला न देता हुआ धीरे धीरे धर्म को सञ्चित करे जैसे दीमक वो को बनाती है ॥२३॥ नामुत्र हि सहायार्थ पिता माता च तिष्ठतः।