पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२५९

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२५६ मनुस्मृति भाषानुवाद कुल उत्पन्न करने की इच्छा करने वाला सर्वदा अच्छे २ पुरुषों के साथ ( कन्यानानादि) संबन्ध करे और अधम २ मनुष्यों के साथ छोड़ दें। (न करे) ||२४४॥ उत्तमानुत्तमानाच्छन्तीनान्दीनांश्च वर्जयन् । ब्राह्मणः श्रेष्ठतामेति प्रत्यवायेन शूद्रताम् ॥२४॥ घटकारीमृदुर्दान्तः कराचाररसंबसन् । अहिंस्रो दमदानाम्नी जयेत्स्वग तथावतः ॥२४६॥ (क्योंकि ) उत्तम पुरुषों से सम्बन्ध करने और हीनोंके त्याग सेब्राह्मण श्रेष्ठताका पाता है। नीचसंयन्य वनीचताको (प्राप्तहोजाता २४५|| दृढ वृत्ति वाला निष्ठरता,रहित शीत उम्णादिका सहन करने वाला, कर आचरण वाले पुरुषों का सहवास छोड़ता हुआ हमा रहित पुरुष दम -इन्द्रियसंयम और दान से स्वर्ग को जीतता है ॥२४॥ एवोदकं मूलफलमन्नमभ्युद्यतं च यत् । सर्वत. प्रतित यान मध्वथाऽभयदक्षिणाम् ।।२४७॥ पाहताभ्युद्यतांभिक्षांदुरस्ताद प्रचोदिताम् । मेने प्रजापतिझिमपितुष्कृतकर्मण ॥२४॥" 'इन्धन, जल, मूल, फल, अन्न और अभयदक्षिणा ये विना मांगे प्राप्त हो जो सबसे ग्रहण करले ॥२४॥ ले आई और सामने रक्खी लेने वाले ने पूर्व न मांगी हुई मिक्षा पापकारी से भी ग्रहण करे ब्रह्मा ने माना है" ॥२४॥ 'नाश्नन्ति पितरस्तस्य दशवर्षाणि पञ्च च । न च हन्यं वहत्यग्नियस्तामभ्यवमन्यते IR४९||