पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२६४

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चतुर्थाऽध्याय यह गृहस्य ब्राह्मण की सनातन वृत्ति और स्नातक का ब्रत और कल्प जो शुभ गुणकी वृद्धि करता है कहा ।।२५५।। वेद शास्त्र का जानने वाला विप्र इस शास्त्रोक्त आचार से नित्य कर्मानुष्ठान करता हुआ पापको नष्ट कर ब्रह्मलोक में बड़ाई को पाता है ।२६० इति मानवे धर्मशास्त्रे ( भृगुप्रोक्तायां संहिताया ) चतुर्थोऽध्यायः ॥४॥ इति श्री तुलसीरामस्वामिविरचिते मनुस्मृतिभापानुवादे चतुर्थोऽध्यायः ॥४॥