पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२६६

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चतुर्थाऽध्याय २६३

लशुनं गृञ्जनंश्चैव पल्लाण्ड कवकानि च ।

अभक्ष्याणि द्विजातीनाममेध्यप्रभवाणि च ॥५॥ लोहितान्यचनियासान्वृश्चन प्रमवांस्तथा । शेलु गन्यं च पेयू प्रयत्नेन विवर्जयेत् ॥६॥ लहसन* शलगम पियाज कुकुरमुत्ताः और जो मैले में उत्पन्न हो द्विजातियों को अभक्ष्य है ।

  • साधारणतया गृजन को ३ अथों में लेते हैं । १-गाजर

२शलजम वा शलगम ३-लहसन, परन्तु मुख्य करके गृजन का अर्थ शलगम ही जान पड़ता है । जैसा कि धन्वन्तरि निधन्दु करवीयदि ४ वर्ग अङ्क १० में गृञ्जनं शिखिमूलं च यत्नेष्टं च चर्च लम् । ग्रन्थिमूलं शिखाकन्दं कन्द डिण्डीरमोदकम् ॥ गृञ्जनं कटु काम्यं च दुर्गन्धं गुन्मनाशनम् । रुच्यं च दीपनं हृयं कफवातरूजापहम् ॥ गृजन जिसके मूल पर शिखा है. जो यवनों का इष्ट (पसन्द) है गोल है जो गांठदार मूल है शिखा कन्द, कन्द डिण्डीरमादक जिसके नामान्तर हैं वह गृजन कटु गर्म दुर्गन्ध है और गुल्म रोग नाशक है । रुचि, अग्नि और हृदय को बढाने घाला वात कफ रोगों का नाशक है । इससे शलजम का अर्थ पाया जाता है क्यों कि ये गुण जिनमें विशेषकर यवनेष्टता, कटुता, दुर्गन्ध, वात , कफ नाशकता. उष्णवा गोलहोना, गांठ होना. ऐसे लक्षण हैं जो गाजर से नहीं मिलते, शलजम से ही मिलते हैं । गृवन से लहसन के प्रहण में प्रमाण-