पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२६७

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288 मनुस्मृति भाषानुवाद - महामन्दारसानोऽन्यो गृजना दीघपत्रका। धन्वन्तरि निघण्टु करवीरादि ४ वर्ग इस मे लम्बे पत्ते वाले (रसान लड्मन) को भी गृचन कहा है || गृजन का अर्थ गाजर होने से प्रमाण - गाजर के नाम और गुण उक्त ग्रन्थ के उत्तपत पर- गर्जर पिङ्गलं मूलं पीतक मूलकं तथा । स्वादुमूलं सुपीतं च नागरं पीतमूलकम् ॥ गजरं मधरं रुच्यं किंचिरकट कफावहम् । आध्मानकमिशलघ्नं साइपित्तनुपापहम् ।। इममें गर्जरके बदले ३ पाठ पाये जाते हैं। गृलन २ गृखर ३गर्जर । यही गाजरहै क्योंकि इसका पीला होना कफकारक होना स्वादुभूल होना, मधुर होना ऐसे गुण हैं आ गाजरमे पाये जातेहैं। अव गृजन का अर्थ गाजर लेने में केवल १ पाठान्तरका सहारा है, अन्य कुनहीं। फिर कलकत्त के छपे बड़े कोश शब्द कल्पद्रम मे जो राधाकान्त देवबहादुर ने प्रकाशित किया है उम में भी गृजन का अर्थ शलगम है । यथा जनस्-क्ली० । मूलविशेषः । (विपदिग्धपशेमी- सम्, इति मेदिनी ) शलगम इति ख्यातः । यवनेष्टम् । शिखाकन्दम् । कन्दम् । कटुत्वम् । उप्णत्वं कफवातरोग- गुल्मनाशित्वम् । रुच्यं, दीरनं, हृय, दुर्गन्धम् ॥ इत्यादि से भी पापा जाता है कि स्पष्ट शलगमही गृजन है। मैदनी फेोपकार गृखन का अर्थ जहर (विघ) मे सनापशुमांस ,