पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२६८

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पंचमोऽध्याय २६५ कोत्रिया अन्ना यह भी मुनते हैं कि गालोम्यां गृजन प्रोक्तं लशुने वृत्तमूलके । अर्थान् गालामी ओपवि का नाम गृखन है और गोल आकार मूल लगुनके अर्थम भी गृचन शब्दहै । अमरकाप १४१ १४८ में नशुनं गजनारिष्टमहाकन्दासान । कहा है जिसमे लशुन शब्द का पयाय गृचन पाया जाताहै। इसी की मद्देश्वरकृत अमरविलेकनाभ्नी टीकामें कहा है कि- लशुनग जनमोराकृतिभेदै पिरसैक्यादऽभेटइनियहवान्यन्ते लगुन और गृशन के आकार (सूरत शकल) में भेट होने पर भी रम ( म्वादु ) एकमा होने से यहा अमाप दोनों का एक (अभिन्न) कहा है । ऐना नहुना का मत है। वैदिक निघण्टु में गृचन शब्द पाया हो नी जाता । उणादि- काप में भी इस शब्द का पता नहीं मिलता। बहुपक्ष और बहुत गुणों के मेल से गृचन का अर्थ शलगम पाया जाता है । यदि यवनष्ट आदि विशेपणा वा किन्ही तिहासिक प्रमाणे से यहा भी गृशना अर्थ गालामी हो वा अन्च हो गाजर नहीं समझ पड़ता। उक्त मनु के श्लोक में लशुन शब्द पृथक् पठित है, अत गृजन का अर्थ लशुन भी नहीं ले सकते क्योंकि वद्यक शास्त्र का मत है कि- तुल्याभिधानानितुमानिशिष्ट व्याणियोगेविनिवेशितानि ।' अधिकारागमयंप्रदायभिध्यतर्केण च तानिप्रज्यात् ॥